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पशुओं में फैल रहा खतरनाक कुर्रा रोग, चिकित्सको ने दी बीमार पशु को दारू पिलाने की सलाह

जैसलमेर के नाचना व आसपास  गांवो में फैल रहा कुर्रा रोग,  खारिया गांव में 15 से ज्यादा  पशुओं की इस रोग से हुई मौत Bap News: जैसलम...


जैसलमेर के नाचना व आसपास 
गांवो में फैल रहा कुर्रा रोग, 
खारिया गांव में 15 से ज्यादा 
पशुओं की इस रोग से हुई मौत

Bap News: जैसलमेर जिले के नाचना और आसपास के गाँवों में पशुओं में क्लॉस्ट्रिडियम बॉटूलिज्म जीवाणु जनित कुर्रा रोग फ़ैल रहा है जिससे खारिया गाँव में 15 से ज्यादा गायों की मौत हो चुकी है। पशु चिकित्सक के अनुसार इस रोग का कोई ईलाज नहीं है। ये संक्रामक रोग है, जो तेजी से दुसरे पशुओं में फ़ैल सकता है। उन्होंने गाय को देशी दारु पिलाने की सलाह दी है।

खारिया निवासी रामसिंह रावलोत ने बताया कि खारिया गाँव में करों वाला रोग (कुर्रा रोग ) से 15 से ज्यादा गाय मर चुकी है। कई अन्य गायें इस रोग से बीमार है।  रामसिंह ने इस संबंध में नाचना के पशु चिकित्सक डॉ. राजकुमार शर्मा से बात की तो उन्होंने बताया कि इस रोग का कोई ईलाज नहीं है। उन्होंने गाय को देशी दारु पिलाने की सलाह दी है। साथ ही डॉक्टर ने कहा कि इस बीमारी से मृत पशु को कुत्ते खायेंगे और सार्वजनिक पशु खेली में पानी पियेंगे तो इस रोग का फैलाव बढ़ता जाएगा।

गौरतलब है कि पशुओं के कई ऐसे रोग है जिनका ईलाज आधुनिक चिक्तिसा विज्ञान में नहीं है, इसलिए थक-हार कर डॉक्टरों को देशी वैधों के नुस्खे अपनाने पड़ते है। देशी दारू का प्रयोग भी ऐसा ही नुस्खा है, जिसका प्रयोग लंबे समय से नाचना क्षेत्र में लोगो द्वारा किया जाता रहा है।

माना जाता है कि दारू से कुर्रा रोग के जीवाणु जो पशु के पाचन तंत्र में होते है, मरने लगते है और पशु को मानसिक राहत मिलती है। जिससे वो रिकवरी कर सकता हैं। हालांकि पशु को दारू की कितनी खुराक देनी है, इसका निर्णय किसी देशी पशु वैध से पूछकर ही करना चाहिए.

गाय में कुर्रा रोग के लक्षण 
यह रोग मुख्य ग्याभिन, अधिक दूध देने वाली गायों में गर्मियों में ज्यादा होता है। क्लॉस्ट्रिडियम बॉटूलिज्म नामक जीवाणु जब स्वस्थ पशु के शरीर में प्रवेश कर जाता है तो वह जीवाणु न्यूरोटोक्सीन पैदा करता है। जिस कारण पशु रोगग्रस्त हो जाता है। रोगग्रस्त पशु के मुंह से लार गिरना, आगे वाले पैरों में जकड़न होना, जीभ का लकवा होकर मुंह से बाहर लटकना इस रोग के प्रमुख लक्षण है। इस रोग के बचाव के लिए कोई भी वैक्सीन भारत में नहीं है।

सभी उम्र के मवेशी और भेड़ बोटुलिज़्म या कुर्रा रोग के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं, मांसपेशियों की कमजोरी (लकवा) इसकी विशेषता है। प्रभावित जानवर कमजोर हो सकते हैं, डगमगा सकते हैं या नीचे गिर सकते हैं। मवेशी  लकवा और कभी-कभार जीभ का फटना प्रदर्शित करते हैं। भेड़ और बकरियों में लक्षण मवेशियों के समान होते हैं लेकिन जीभ का फटना उतना स्पष्ट नहीं हो सकता है। ज्यादातर मामलों में बीमारी घातक होती है, हालांकि कुछ जानवर ठीक हो सकते हैं।

गाय में कुर्रा रोग का कारण व बचाव
ग्रामीण क्षेत्रों में गायों में कुर्रा रोग फैलने का मुख्य कारण मृत पशुओं की हड्डियाँ चबाना अथवा संक्रमित पशु के साथ चारा पानी या स्पर्श से फैलता है। जबकि शहरी क्षेत्र में सड़े गले कार्बनिक पदार्थ, फल, सब्जियां इसका कारण बन सकते है। एक बार रोग का प्रकोप शुरू होने पर पशुओं को एक दुसरे से दूर रखना चाहिए और हर पशु के चारे पानी की व्यवस्था अलग करनी चाहिए।

क्लोस्ट्रीडियम बोटुलिनम आमतौर पर दुनिया भर में मिट्टी, पानी और समुद्री तलछटों में पाया जाता है, लेकिन यह कई स्वस्थ घोड़ों, मवेशियों और मुर्गी के आंतों के मार्ग का एक सामान्य निवासी भी है।

मृत पशुओं के शव खाकर कुत्ते और कौवे इस रोग के वाहक बनते है, वो सार्वजनिक जल स्रोत में पानी में ये जीवाणु फैलाते है। जिससे अन्य पशुओं में रोग फैलता है। अतः दुधारू पशुओं को अलग बाड़े में रखे और साफ़ सफाई का ध्यान रखें। बीमार पशु को तुरंत अलग कर दें।

सभी पशुओं या पक्षियों के मांस और शवों तथा कूड़े का सावधानीपूर्वक निपटान आवश्यक है, जिससे पशुपालकों को पशुधन के जोखिम को कम किया जा सके।


(स्त्रोत : THE JAISALMER NEWS)