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किसानो का पर्व हाली अमावस्या व आखातीज

टोकर बजाकर सुख समृद्धि की कामना, सांकेतिक हल चला किसानों ने लिए सगुन बाप न्यूज |  किसानों का मुख्य त्यौहार वैसाख मास की अमावस्या जिसे हाल...


टोकर बजाकर सुख समृद्धि की कामना, सांकेतिक हल चला किसानों ने लिए सगुन

बाप न्यूजकिसानों का मुख्य त्यौहार वैसाख मास की अमावस्या जिसे हाली अमावस्या भी कहते। इसके बाद आखाबीज व आखा तीज है। इस दिन बड़े बुजुर्ग आगामी वर्ष के सुगन लेने घरो से बाहर खेतो में सुबह जल्दी पहुंचते है। तीन दिन सुगन लेने के बाद आगामी वर्ष का अनुमान बताते है। कहा जाता है कि किसानों द्वारा इन दिनों लिया जाना वाला सगुन लगभग सही बैठता है। चिड़िया, हिरण, तीतर, बटेर, नंदी दहाड़, खीच के तरल व ठोस सहित कई प्रकार से मन में विचार कर किसान सगुन ले लेते है।

विलुप्त होती अनूठी परम्पराएं 

कस्बे में किसान वर्ग विशेषकर पालीवाल ब्राह्मण समाज के लोग आखातीज से काफी दिन पहले रात या अल सुबह लोेहे के बड़े बड़े घंटे जिसे स्थानीय बोलचाल में टोकर कहते है बजाते थे। टोकर बजाने की टोली समचे गांव में घुमती थी। टोकरों का वजन 10 से 20 किलो का होता था। दोनो हाथों में टोकर लेकर चलते चलते कलाईयों के सहारे बजाया जाता था। रात के सन्नाटे को चिरते हुए टोकरों की मधुर ध्वनि कर्णप्रिय लगती थी। समय के साथ अब यह अनुठी परम्परा लगभग विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है। अब वे टोकर भी नहीं रहे। हंालाकि अब महज सुगन के तौर पर हाली अमावस्या व आखातीज पर टोकर बजाया जाता है। बीती रात भी पालीवाल ब्राह्मण समाज के युवाओं की टोली मेघराजसर तालाब पर भैरुनाथ मंदिर से गांव में हर गली से निकलती है। श्याम सुंदर, हीरालाल, मोतीलाल, गोपाल, लक्ष्मण, मेघराज, ओमप्रकाश, नन्दकिशोर, सुरेश, कैलाश, देवीलाल, गोरख सहित कई युवा परम्परा को जीवित रखने के प्रयत्न कर रहे है। इन दिनों कब्बडी सहित अन्य स्थानीय खेलों का आयोजन भी होता हैं। खेलों में किसान अपनी शारीरिक क्षमता का प्रदर्शन भी करता है।

घरों में बनेगा खीच व गलवानी 

तीन दिवसीय किसानों का यह पर्व हाली अमावस्या से शुरू होकर तृतीया यानि आखातीज तक चलता है। इन दिनों घरों में बाजार व गेंहू का खीच बनता है। उसके साथ गुड़ की गलवानी बनती है। इन तीन दिनों में केर व सांगरी के दर्शन अशुभ माने जाते है। इसके साथ बच्चों सहित युवा व बड़े पतंगबाजी का लुत्फ उठाएंगे।