सफेद आक पर खिले फूल
सफेद आक पर खिले फूल |
बाप न्यूज |फाल्गुन मास में पतझड़ के बाद बसंत ऋतु
के आगमन का संकेत प्रकृति के बदलते परिवेश से लगने लगा
है। प्रकृति फिर से नया श्रंृगार कर रही है। पेड़-पौधे नए पत्ते धारण करने लगे
हैं, फूल खिलने लगे हैं। प्रकृति के नए शृंगार के साथ ही वसंत की बयार भी बहने लगी
है। जाती हुई सर्दियां, बड़े होते दिन, गुनगुनाती धूप धीरे-धीरे तेज होती हुई।
खेतों में नई फसल पक जाती है। सरसों, राई और गेहूं के खेत मन को लुभाने लगते हैं।
वसंत का उल्लास अब जन-मन के साथ ही मौसम में भी बिखरने लगा है। वसंत हर किसी को
बरबस अपनी तरफ आकर्षित करता है।
मिमजर से लकदक खेजड़ी की टहनिया |
बाप सहित समूचे मारवाड़ क्षेत्र में बहुतायत पाए जाने वाले पौधे
खेजड़ी इन दिनों फूलो से अटी पड़ी है। टहनिया मिमज़र से लकदक हो गई है, जिस वहज से टहनियां
नीचे की तरफ झुक गई। आक के पौधे पर भी बहार छाई हुई है। बताया जा रहा है कि आक के पौधों
पर इतने फूल कभी नही लगे। सफेद आक का पौधा धार्मिक आस्था से भी जुड़ा हुआ है। श्रद्धालु
इसमें शिव का रूप देखते है। इसके पुष्प शिव पूजन मंे काम में लिये जाते है। सफेल आक
के पौधों पर हजारों सफेद फूल लगे देख हर किसी का मन खुशी से झूम उठता है। गूंदा, रोहिड़ा,
बोगन बेल भी रंग बिरंगे फूलो से अटी पड़ी है। प्रकृति की अनुपम छटा मन को आल्हादित कर
रही है। कोयल की कुहू-कुहू की आवाज भंवरों के प्राणों को
उद्वेलित करने लगती है।
मूड बदलने वाले हार्मोन की बढ़ जाती है मात्रा
मनोविज्ञान िवशेषज्ञों के अनुसार वसंत से होली के बीच मौसम परिवर्तन से शरीर में
कई बदलाव होते हैं। इस दौरान दिन बड़े होने, सूरज की रोशनी बढ़ने, लहराती सरसों और
रंग-बिरंगे फू ल दिखने से लोगों के शरीर में ऐसे हॉर्मोन की मात्रा बढ़ जाती है जो
मूड में बदलाव के लिए जिम्मेदार हैं।
सेरोटोनिन
की बढ़ी मात्रा से आती है खुशियां
आयुर्वेद के अनुसार सर्दियों में लोग कम सक्रिय रहते हैं जिसके कारण उनके जैव
रासायनिक क्रिया प्रभावित होती है। सर्दी के बाद जब वसंत का आगमन होता है तो दिन
बड़े होते हैं और धूप होने से तापमान बढ़ता है। तापमान बढ़ने से लोगों की सक्रियता
बढ़ने और धूप के कारण शरीर में सेरोटोनिन हार्मोन की मात्रा बढ़ने लगती है। यह
हार्मोन खुशी के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। इससे हम खुद के प्रति अच्छा महसूस
करते हैं।
वसंत ऋतु
में कफ होता है प्रभावी
आयुर्वेदेचार्य बताते है कि वर्षा ऋतु में वात का प्रकोप, शरद ऋतु में पित्त और
वसंत ऋतु में कफ का प्रकोप रहता है। वात के रोगों से बचने के लिए वस्ती या एनीमा,
तेल का प्रयोग करना चाहिए। पित्त के प्रकोप से बचने के लिए पेट साफ रखने के लिए घी
का प्रयोग करना चाहिए। जबकि वसंत ऋतु में होने वाले कफ के प्रकोप से बचाव के लिए
अगर 15 दिन में उल्टी आ जाए तो ठीक होता है। सेंधा नमक, शहद और गुनगुने पानी का
प्रयोग करें तो कफ से मुक्ति मिल जाएगी। मोटापा, मधुमेह, सांस रोगी, घुटने का रोग
होने की संभावना भी इसी मौसम में रहती है। इस समय शरीर में भारीपन, मन में मिचली
और खांसी में बढ़ोतरी हो जाती है।
मनोविज्ञानी विशेषज्ञों के मुताबिक बसंत का असर तन-मन पर पड़ता है। लोगों की
सक्रियता बढ़ने से शरीर में पहले के मुकाबले एंडोर्फिन हार्मोन का स्त्राव अधिक
होने लगता है। यह प्राकृतिक दर्द निवारक होता है और दर्द में सक्रिय होता है।
सर्दियों में नींद और आलस के लिए जिम्मेदार रसायन मेलोटोनिन का स्राव अधिक होता
है, लेकिन वसंत में धूप खिलने और रंग बिरंगे नजारे दिखने से हॉर्मोन का स्राव कम
होता है।