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गाँव की आती याद : प्रतापसिंह टेपू

STORI:   चारों ओर पसरा पथरीला मगरा, मगरे में अथाह मोह की महिमा, एक मार्ग से निकलतेअनेक रास्ते और फिर बनता एक रास्ता, पास बुलाती जाळ, हरखात...


STORI:  चारों ओर पसरा पथरीला मगरा, मगरे में अथाह मोह की महिमा, एक मार्ग से निकलतेअनेक रास्ते और फिर बनता एक रास्ता, पास बुलाती जाळ, हरखाती खेजडी़, निरखती बोरडी़,झाला देते केर, आवाज देते आक, मैदान सजाती बेफा़नी, पगडण्डियाँ...सुहानी साँझ...घरों को लौटती गाएं, खुले गोचर में चरती भेड़-बकरियाँ, मोहब्बत-भाई-चारे की रंगत और सहयोग, भलमनसाहत की संगत लिए यहाँ के नागरिक..
कृषि की उन्नत पैदावारों को अपने में समेटे हरियल खेत, मखमली बाळू के भँवर बनाते छितराये धोरे,  शांति के वातावरण को सुरम्य बनाती आरती, भौतिक दौड़ की होड़ से विमुक्त मेरा गांव - टेपू।

आज गाँव की याद आई और बहुत आई। लोगों से ज्यादा रूंख याद आये। घरों से ज्यादा मगरे याद आए। याद इसलिए नहीं कि यहाँ परेशानी है,अपितु, इसलिए कि इतना फुर्सत में होकर दूर रहा नहीं। यादों के सावन-भादो उमड़ घूमड़ कर आए। साथियों का साथ , मरू-रंगत की संगत, मन्दिरों की दहलीज, खेतों का प्रेम, अपनों का हेत, अन्तस्थों का दुलार आज पुरजोर पुकार बैठा। घर की लक्ष्मण-रेखा मुझे आश्चर्यचकित देखती रही...कभी मेरी व्यग्रता को तो कभी मेरी आग्रही समग्रता को..!! उच्छवास  की आशा और निश्वास की निराशा, दोनों मेरे साथ थी...टकटकी लगाए..अपलक निहारते हुए...!!

मेरे प्रेम पूरित मगरों..
यादों की आबाद दुनिया में तुम महकाते हो। प्रेयसी की भाँति मेरी यादों,वादों में तुम हो। तुम्हारी एक झलक पाने को बेताब रहता हूँ, अवसर के इशारे क्या मिले,बेतहाशा दौडा़ आता हूँ। तुम मेरी रग-रग में हो। याद है,बचपन में,मैं शहर जाने से पहले तुम्हारी ही गोदी में आकर बैठता,हम बातें करते और तुमसे छुट्टी बढाने का आश्वासन लेता..अनेक बार ऐसा हुआ कि 2-3 दिनों की छुट्टी बढ़ती भी...और इधर अपना लगाव। बचपन से आज तक मुझे तुमने बाँधे रखा है। किसी स्नेहिल प्रेम-पाश में। मैं जल्द आऊँगा।

प्राण प्रिय वृक्ष सखाओं..
कितना समय बीता न,मिल न पाए। तुम्हारी ठण्डी छाया का आशीर्वाद, गोद में बैठकर वे संसार से छिपी बातें, हमारा आलिंगन, सफलता-विफलता की कहानियाँ, संकट-संघर्षों के दौर , योग,श्वास-प्रश्वास का आरोही अवरोही क्रम...सब शेष है..प्रतीक्षित भी। तुम्हारे पत्तों से सहलाव, तनों से
बहलाव,जडो़ं के पास में पत्थरों के महल, कल्पनाओं के समन्दर, इरादों के पहाड़, संकल्पों के वो धागे..सब बाकी..मेरी हर हिचकी में तुम्हारी याद का तराना ही...अब कुछ न कहूँगा..कहूँगा तो फिर रोऊँगा....आऊँगा, पतझड़ से फुर्सत पा लो..तुम और हम दोनों..!!

सुहानी_साँझ...
 मेरे जीवन का सबसे यादगार, सबसे यादगार, सबसे मोहब्बती इबारती समय....साँझ..सुहानी,मनमोहनी..। यह समय वह होता है,जब मैं सारी हारें,थकानें,विफलताएँ,
विकलताएँ,हताशाएँ भूलाकर...बस,इस साँझ को गले लगाता हूँ। तब तक नहीं छोड़ता, जब तक यह रात का हाथ न थाम ले। तुम्हारी खूब याद आती है। आऊँगा न,कुछ एकान्त को जी लूँ बस..!!

फर_फर_फहराती_ध्वजाएँ...
 मेरी सुबहों की प्रफुल्लित आराधना, मेरी रात्रि की प्रस्फुटित प्रार्थना..! मन्दिर की दहलीज , जैसे सब कुछ पा लिया और सबसे सुरक्षित गोद का भान, लौकिक रिवाज से परे का कोई मान...आशीष पाने को,शीश नवाने को...जल्द आऊँगा।

प्रतीक्षारत_अपनों...
 न जाति का बन्धन, न वर्ग का भेद..!! मुझे चाहने वाले सभी मेरे अपने हैं। हथाई , स्नेह और विमर्श का आधार आप ही हो। आप ही से पूर्ण हूँ, आप सम्पूर्ण साथ हो तो निपूण हूँ।
अभी आप सभी राष्ट्र का दायित्व निभाओ और मैं भी। लक्ष्मण रेखा को महत्त्व हम मिलकर दें।
जल्द ही मिलेंगे...।

Bap News के लिए प्रतापसिंह टेपू 'एडवोकेट' की कलम से